
जीने का अन्दाज़ सुहाना आ गया
जशन गम का भी मनाना आ गया
ज़ख्म तो हमने बहुत खाये मगर
दोस्तों को आज़माना आ गया
तन्हा तन्हा ज़िन्दगी जीते रहे
साथ खुद का यूँ निभाना आ गया
बेवफा है कौन अब क्या फिक्र है
चोट खा के मुस्कुराना आ गया
जब न थी जीने की और सूरत कोई
खुद ब खुद हर गम भुलाना आ गया
जल चुका मेरा मकां इतनी दफा
राख से भी घर बनाना आ गया
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