
हमउम्र
ज़िंदगी खेलती है
पर हमउम्रों से...
कविता खेलती है
बराबर के शब्दों से, ख़यालों से
पर अर्थ खेल नहीं बनते
ज़िंदगी बन जाते हैं...
रात-दिन रिश्ते भी खेलते हैं
सिर्फ़ मनचाहों से
उम्रें कोई भी हों
ज़िंदगी में मनचाहे रिश्ते
अपने आप हमउम्र हो जाते हैं.
तेरा भला करे
अमृता जब भी खुश होती-
मेरी छोटी-छोटी बातों पर
तो वो कहती-
वे रब तेरा भला करे।
और मैं जवाब में कहता हूँ-
मेरा भला तो
कर भी दिया रब ने
तेरी सूरत में
आकर...
No comments:
Post a Comment